Sunday 24 December 2017

न्यूट्रान तारों के विलय की घटना ने लगाई आइंस्टाइन के जनरल रिलेटिविटी थ्योरी पर मुहर

अंतरिक्ष में हो रही हलचलों पर नजर रखने वालों के लिए इस साल की सबसे खास घटना दो न्यूट्रान तारों का आपस में विलय रहा| पहली बार खगोलविदों ने यह हलचल देखी| यह घटना धरती से 130 मिलियन प्रकाश वर्ष से दूर अंतरिक्ष में घटित हुई| इन दोनो तारों का भार सूर्य से अधिक था| लेकिन ये आकार में एक मध्यम शहर जितने ही बड़े थे| दोनों न्यूट्रॉन तारे दो सुपरनोवा के विस्फोट में निकले थे।
इस घटना का संकेत सबसे पहले 2016 के फरवरी में मिला था| जब लीगो ने अंतरिक्ष की बहुत ही हल्की गुरुत्वीय तरंग को कैच किया था| इसके बाद इस साल अगस्त में दोबारा पहले से अधिक सशक्त गुरुत्वीय तरंग देखा। दो न्यूट्रॉन तारों के इस विलय ने भौतिक विज्ञानी आइंस्टाइन के जनरल रिलेेटिविटी सिद्धांत को भी सही सिद्ध कर दिया| जिसमें उन्होंने कहा था कि जब दो न्यूट्रॉन तारों का विलय होता है तो गुरुत्वीय तरंगें निकलती हैं| इसे लीगो और वीआरजीओ ग्रेविटेशनल वेव ऑब्जरवेटरीज और कई सारी टेलिस्कोप्स के माध्यम से कैच किया गया।
यह घटना ब्रह्मांड के सबसे बड़े तत्व डार्क मैटेरियल के बारे में कई रहस्यों से पर्दे उठाएगी, ऐसा खगोलविदों का मानना है। माना जाता है कि यूनिवर्स का बहुत बड़ा हिस्सा डार्क मैटेरियल से बना है। जिसके बारे में बहुत कम जानकारी है। इससे करीब 70 प्रतिशत ग्रहीय पिंड और शॉर्ट गामा रेज की उत्पत्ति होती है। जो कभी कभार फ्लैश के तौर पर अंतरिक्ष में देखी जाती हैं। यह पिछले दो दशकों की सबसे महत्वपूर्ण खगोलीय घटना है जिसे ग्रेविटेशनल ऑब्जरवेटरी से कैद किया गया है। टेलिस्कोप्स ने विजिबल, इन्फ्रारेड, और अल्ट्रावायलेट के साथ एक्सरे और रेडियो वेव्स को भी कैप्चर किया। कार्नेगी ऑब्जरेवटरी के एस्ट्रोनॉमर जोश सिमोन कहते हैं कि प्रत्येक ऑब्जरवेशन अनमोल था। लाइट तेजी से धीमी हो रही थी और उसका रंग भी बदल रहा था।

इस खगोलीय घटना ने किलोनोवा नाम के सिद्धांत को फिर से चर्चा में ला दिया है। जिसके तहत माना जाता है कि दो न्यूट्रान तारों के विलय होने से न्यूट्रॉन रिच मैटेरियल जैसे सोना, चांदी, प्लेटिनम और यूरेनियम जैसी धातुएं निकलती हैं। 
वैज्ञानिकों ने यूनिवर्स के विस्तार करने की गति मापने के लिए एक नया माप तैयार किया है। जो कि यूनिवर्स के विस्तार करने की गति को सही सही मापने में मददगार हो सकता है। सुपरनोवाओं को देखने से पता चलता है कि यूनिवर्स प्रत्येक मेगा पार्स (3.3 प्रकाश वर्ष) के लिए 73 किलोमीटर प्रति सकेंड की गति से विस्तार कर रहा है। यह कॉस्मिक माइक्रोवेव बैकग्राउंड मापने की पुराने तरीकों से काफी तेज है। अब तक माना जाता था कि यूनिवर्स के विस्तार करने की गति 67 किलोमीटर प्रति मेगापार्स है।

क्या होता है न्यूट्रॉन तारा


न्यूट्रानतारे ये मृत तारे का अत्यंत सघन रूप है, जो कि सिर्फ न्यूट्रानसे बने होते है। न्यूट्रानतारो का एक उपवर्ग पल्सर भी है। इन्हे पल्सर इसलिये कहा जाता है क्योंकि ये विद्युत चुंबकिय विकीरण(Electro Magnetic radiation) की  पल्स उत्सर्जीत करते रहते है। नाम के अनुसार ये तारे न्यूट्रान से बने होते है। ये उन तारो के अवशेष होते है जिनका द्र्व्यमान 1.4 से 9 सौर द्रव्यमान के बीच होता है। तारे के नोवा बनने के बाद उसका केन्द्रक सिकुड जाता है और उसकी बाहरी तहे अंतरिक्ष मे विस्फोट द्वारा उत्सर्जित होकर निहारीका (Nebula) बनाती है। गुरुत्वाकर्षण केन्द्रक को और सिकुड़ने और सघन होने पर मजबूर करता है। यह केन्द्रक कुछ सेकण्डो मे कुछ किमी(25 किमी) के गोले में बदल जाता है। ये इतना सघन होता है कि एक सूई की नोक के बराबर के पदार्थ का द्रव्यमान हजारों टन मे होगा।


पृथ्वी के साधारण वातावरण मे यह घटना असंभव है। एक परमाणु मे काफी इलेक्ट्रान और नाभिक के बिच काफी सारी खाली जगह होती है जो कि चार मूलभूत बलों मे से एक विद्युत चुम्बकिय बल के कारण होती है। ये बल इलेक्ट्रान को नाभिक से दूर रखता है। जब यह विद्युत चुम्बकिय बल कार्यशील होता है, तारा सिकुडकर न्यूट्रान तारे के आकार मे नही आ सकता। लेकिन तारे का द्र्व्यमान बहुत ज्यादा होने पर गुरुत्वाकर्षण (मूलभूत बलो मे से एक) विद्युत चुम्बकिय बल से ज्यादा प्रभावी हो जाता है। इन्ही कुछ क्षणो मे विद्युत चुम्बकिय बल टूट जाता है और गुरुत्वाकर्षण के दबाव मे इलेक्ट्रान प्रोटान से मिलकर न्यूट्रान बना देते है। और जो भी कुछ बचता है वह सिर्फ न्यूट्रान  तथा एक अत्यंत सघन न्यूट्रान तारा जन्म लेता है।

न्यूट्रान तारा की रचना काफी आसान होती है। इसकी तीन तहे होती है। एक ठोस केन्द्रक, एक तरल आवरण और एक पतली बाहरी परत। न्यूट्रान तारो का एक बहुत पतला कुछ सेंटीमीटर (1 इंच) का वातावरण भी होता है जो कि तारे के कार्य के लिये महत्वपूर्ण नही होता है। न्यूट्रान तारे के भी दो अक्ष होते है। चुम्बकिय अक्ष और घुर्णन अक्ष। पृथ्वी की तरह ये दोनो अक्ष भी एक साथ नही होते है।

पल्सर


ये भी न्यूट्रान तारे होते है लेकिन एक विशेषता के साथ। पल्सर अंतरिक्ष मे दो अत्याधिक उर्जा वाली तरंगे उत्सर्जित करता है जो कि उसकी चुंबकिय अक्ष के पास सघन होती है। यह चुंबकिय बल पृथ्वी के चुंबकिय बल से 10 खरब गुना ज्यादा शक्तिशाली होता है। ये तरंगे सामान्यतः किसी साथी तारे से प्राप्त किये पदार्थ की होती है, जिसमे कणो की गति को प्रकाश की गति के 20% तक त्वरित कर दिया गया होता है।

पल्सर निरिक्षणो के अनुसर काफी तेज घूर्णन करते है, अधिकतर एक सेकंड मे एक घूर्णन करते है। सबसे तेज पल्सर एक सेकंड मे 642 घूर्णन करता है और सबसे धीमा 4.308 सेकंड मे एक। यह तेजी कोणीक गति के संरक्षण (Law of conservation of angular momentum) के नियम के अतर्गत होती है। इस नियम के अनुसार यदि कोई पिण्ड एक गति से घूर्णन कर रहा है और उस पिण्ड का आकार कम हो जाता है लेकिन द्रव्यमान अपरिवर्तित रहता  है तब उसकी घूर्णन गति बढ जाती है। इसका उदाहरण स्केटर है, वे स्केटींग करते हुये घूर्णन करते समय घूर्णन गति बढाने के लिये अपने हाथ सिकोड कर शरीर के पास ले आते है जबकि घूर्णन गति कम करने के लिये हाथ सीधे कर लेते है।

पल्सर भी धीमे पडते जाते है और रूक जाते है क्योंकि ये अपनी उर्जा तरंग के रूप मे अंतरिक्ष मे भेजते है जिसे गुरुत्विय तरंग कहते है। यह गुरुत्विय तरंग सभी गतिज महाकाय पिंड से उत्सर्जित होती है और इसकी गति प्रकाशगति के तुल्य होती है। घूर्णन से रूकने के बाद की स्थिती मे पल्सर एक साधारण न्यूट्रान तारा बन जाता है। कुछ दुर्लभ मौको पर दो न्यूट्रान तारे एक युग्म तारे के रूप मे बंध जाते है। उर्जा के ह्रास के कारण ये स्पायरल के जैसे एक दूसरे की परिक्रमा करते हुये पास आते जाते है। अंत मे दोनो मिल जाते है, इस स्थिति मे वे दोनो मिलकर एक ब्लैक होल को जन्म देते है।

Sunday 17 December 2017

नासा ने खोजा केपलर 90 सौर मंडल में एक और ग्रह, अब संख्या हुई आठ

 केपलर-90 सूर्य की ही तरह जी टाइप मेन स्टार है। इसके बारे में जरूरी फैक्ट 

धरती से दूरी - 2,545 प्रकाश वर्ष
सतह का तापमान - 6080 केल्विन
उम्र - लगभग 2 बिलियन साल


अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा ने केपलर दूरबीन की मदद से हमारे सौर मंडल की तरह एक तारा-ग्रह प्रणाली खोजी है| जिसके पास आठ ग्रह है। इस तारे का नाम केप्लर 90 है। दरअसल, ये तारे और उसके 7 ग्रह पहले ही खोजे गये थे, आठवें ग्रह की भी पहचान कर ली गई है। ऐसे में सूर्य या उस जैसे किसी तारे की परिक्रमा करने के मामले में केपलर-90 प्रणाली की तुलना हमारे सौरमंडल से की जा सकती है। खास बात यह है कि इस खोज में गूगल की ओर से आर्टिफिशल इंटेलिजेंस की मदद ली गई, जो मानवों के रहने योग्य ग्रहों की तलाश करने में काफी मदद करेगा। केपलर-90 ग्रह प्रणाली के इस आठवें ग्रह का नाम केपलर 90i है। गूगल और नासा के इस प्रॉजेक्ट द्वारा हमारे जैसे ही सौर मंडल की खोज से इस बात की उम्मीद बढ़ी है कि इस सौरमंडल से बाहर भी जीवन हो सकता है|
दिलचस्प है कि केपलर-90 के ग्रहों की व्यवस्था हमारे सौर मंडल जैसी ही है। इसमें भी छोटे ग्रह अपने तारे से नजदीक हैं और बड़े ग्रह उससे काफी दूर मौजूद हैं। NASA के अनुसार, इस खोज से पहली बार स्पष्ट होता है कि दूर कहीं तारा प्रणाली में हमारे जैसे ही सौर परिवार मौजूद हो सकते हैं। यह सौर मंडल हमसे करीब 2,545 प्रकाश वर्ष दूर है।
टेक्सस यूनिवर्सिटी के नासा सगन पोस्टडॉक्टरल फेलो एवं खगोल विज्ञानी एंड्रयू वांडबर्ग ने कहा, 'नया ग्रह पृथ्वी से करीब 30 प्रतिशत बड़ा माना जा रहा है। हालांकि यह ऐसी जगह नहीं है, जहां आप जाना चाहेंगे।' उन्होंने बताया कि यहां काफी चट्टानें हैं और वातावरण भी घना नहीं है। सतह का तापमान काफी ज्यादा है और इससे लोग झुलस सकते हैं। वांडबर्ग के मुताबिक सतह का औसत तापमान करीब 800 डिग्री फ़ारनहाइट हो सकता है। 


 केपलर 90 सौरमंडल के ग्रह -

केपलर90एच
केपलर90 जी
केपलर 90 एफ
केपलर 90 ई
केपलर 90 डी
केपलर 90 आई (नया खोजा गया)
केपलर 90सी
केपलर90बी 




बृहस्पति का ग्रेट रेड स्पॉट है 350 किलाेमीटर गहरा

वाशिंगटन। बृहस्पति ग्रह का ग्रेट रेड स्पॉट की जड़ें काफी गहरी हैं। नासा के जूनो स्पेस क्राफ्ट द्वारा इकट्‌ठा किए गए आंकड़े बताते हैं कि दिखने वाले बादल गृह के वातावरण में 350 किलोमीटर गहराई तक फैला फैले हैं। इसका मतलब है कि इन बादलों की बृहस्पति  के वातावरण में उतनी गहराई है जितनी कि धरती से इंटरनेेशनल स्पेस स्टेशन। जूनो 4 जुलाई 2016 से बृहस्पति की परिक्रमा कर रहा है।
जूनों पहली बार इस इस रेड स्पॉट के करीब से लगभग एक साल पहले गुजरा था। जब स्पेसक्राफ्ट विशाल तूफान से 9000 किलोमीटर ऊपर से होकर गुजरा तो जूनो के माइक्रोवेव रेडियोमीटर ने बादलों की परतों से झांकर वातावरण के 1000 किलोमीटर गहराई तक के तापमान का आंकड़ा जुटाया था।
जूनो के को इन्वेस्टिगेटर एंड्रयू इंगर्सोल ने कहा कि जूनो बादलों की गहराई और रेड स्पॉट की जड़ें तलाश रहा है।  छह अलग-अग माइक्रोवेव वेवलेंथ की मदद से गैसों को मापकर रेडयोमीटर वातावरण की भिन्न-भिन्न परतों को की जांच करता है। इंगर्सोल और उनके साथियों ने पाया कि गैस की मोटी परत की वजह से रेड स्पॉट की सतह गहराई तक गर्म  है।
तथ्य यह है कि 16000 किलोमीटर चौड़ा स्थान तल में अधिक गर्म है।  जो कि ऊपरी सतह पर 120 मीटर  प्रति सेकेंड गति तक की हवा को जन्म देता है। गर्म हवा ऊपर उठती  है। जिसकी वजह से आंतरिक ताप तूफान को मथने के लिए एनर्जी देता है।