Saturday 27 August 2016

रूस और अमेरिका की स्पेस में वापसी

47 साल पहले नासा ने सोवियत यूनियन को अंतरिक्ष की रेस में हराया था। उसने स्पेस मिशन 11 को भेज पहली बार चांद की सतह पर मानव कदमों की चहलकदमी करवाई थी। एक लंबे अंतराल के बाद एक फिर से अमेरिकन कंपनियां लूनार की सतह पर वापसी करने की तैयारी में हैं। इस बार भी मिशन में रूस होगा, लेकिन वह कोई प्रतिद्वंदी न हीं साथी के रूप में।

हालांकि बहुत अधिक चौंकाने वाली खबर नहीं है क्योंकि दोनों देशों की कंपनियां 1993 से ही स्पेस में साथ काम कर रही हैं। जब से इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन के लिए दोनों में गठबंधन हुआ था।
आईएसएस की उम्र पूरी होने को है, इसलिए दोनों देशों की स्पेस एजेंसियों का ध्यान नए प्रोजेक्टों पर है। आइएसएस 2024 में काम करना बंद कर देगा।

नासा के 2030 तक मार्स पर इंसान पहुंचाने के मिशन को देखते हुए हाल फिलहाल में उसका चंद्रमा पर वापसी करने का कोइ इरादा भले ही न लगे लेकिन मार्स मिशन में चंद्रमा का एक बड़ा हिस्सा शामिल होगा। इसे सिसलूनार स्पेस कहते है। उदाहरण के तौर पर नासा की तीन योजनाओं में दो, किसी क्षुद्र ग्रह पर कब्जा करने से सम्बंधित है। वह उन्हें पकड़कर चंद्रमा की कक्षा में डालने की योजना पर काम कर रहे हैं। इसकी संभावनाएं 2020 में भेजे जाने वाले ओरियन स्पेसक्रापफ्ट का दल तलाशेगा।

यही वजह है कि बोइंग और लॉकहीड मार्टिन जैसी बड़ी अमेरिकन एयरोनॉटिकल कंपनियां लूनार बेस स्थापित करना चाहती हैं। इसके लिए वे निकट भविष्य में नासा दबाव भी बना सकती हैं। इसके लिए उन्होनें रूसी स्पेस कंट्रैक्टर्स आरकेके एर्निर्जया और जीकेएनपीटी खरूनिश्चेव को प्रोजेक्ट में शामिल कर लिया है।
नासा की तरह इन कंपनियों का लक्ष्य चंद्रमा ही हो, यह जरूरी नहीं, लेकिन वे चंद्रमा पर एक हैबिटेट बना सकती हैं। यह आगे मार्स मिशन में पड़ाव के रूप में काम करेगा। रूसी कंपनियां इस मिशन में शामिल न हों, ऐसी संभावना बहुत कम नजर आती है, क्योंकि स्पेस में छलांग लगाने के लिए उन्नत तकनीक चाहिए। नासा द्वारा विकसित ताकतवार स्पेस लॉन्च सिस्टम की तकनीक उसके लिए काम आ सकती है।

रूसी और अमेरिकी कंपनियां अभी भले ही कहें कि लूनार सतह का उपयोग सिर्फ स्टडी के लिए होगा, लेकिन नासा इसका आगे बड़ा प्रयोग कर सकता है। वह क्षुद्र ग्रहों को खींच कर चन्द्रमा की कक्षा में लाने की योजना पर काम कर रहा है। इसके लिए 12 और 14 जुलाई को सैडियागो में रूसी और अमेरिकी कंपनियों ने आईएसस रिसर्च एंड डेवलपमेंट कॉन्फ्रेंस भी आयोजित किया था।
इस तरह राजनीति तनातनी के बावजूद स्पेस तकनीक की दिशा में दोनों देशों के एक साथ काम करने की संभावनाएं बनती नजर आ रही हैं। वैसे भी कहा ही जाता है कि विज्ञान की कोई सीमा नहीं होती। शायद यह बात विश्व की दो महा शक्तियां सच कर दें।

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